शनिवार, 31 मई 2008

लफ़ज़ों के नए सौदागर

यूनुस ख़ान
हिंदी सिनेमा का गीत-संसार बड़ा निराला है और सबसे निराले हैं इसके गीतकार। मजरूह सुल्तानपुरी आए थे मुशायरा पढऩे और बना दिए गए गीतकार। आनंद बख्शी गायक बनने आए थे, कई बार वापस लौटे, पर आखिरकार कामयाब हुए। अनजान पहले ही एक कामयाब गीतकार बन चुके थे। जब उनके बेटे समीर ने गीतकार बनने की इच्छा व्यक्त की, तो अनजान ने साफ कह दिया था कि अपने हिस्से का संघर्ष तुमको स्वयं करना होगा। आपने देखा ना कि मजरूह सुल्तानपुरी से लेकर समीर तक की पीढ़ी के गीतकारों के बारे में हम कुछ न कुछ तो जानते ही हैं, लेकिन पिछले तकरीबन पांच सालों में एकदम नए गीतकारों की एक पूरी पीढ़ी सक्रिय हुई है। और दिक्कत यह है कि इन गीतकारों के बारे में हम ज़्यादा नहीं जानते। तो आइए, आज आपका परिचय लफ्ज़ों के सौदागरों की नई पीढ़ी से करवाया जाए।
नए गीतकारों में सबसे कम चर्चित नाम है मुन्ना धीमन का। मुन्ना धीमन ने हाल ही में अजय देवगन की फिल्म 'यू मी और हम' और अश्विनी धीर की 'वन टू थ्री' के गाने लिखे हैं। आने वाली फिल्म 'हाल-ए-दिल' में भी उन्हीं के गाने हैं। जब रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'नि:शब्द' में अमिताभ बच्चन ने उनका लिखा गीत 'रोकााना जिएं...' गाया, तो अचानक सबका ध्यान मुन्ना धीमन पर गया। मुन्ना धीमन का नाता बुड़ैल कॉलोनी चंडीगढ़ से रहा है। दरअसल वो चंडीगढ़ संगीत नाटक अकादमी के लिए नुक्कड़ नाटक लिखा करते थे। बचपन से ही लिखने के शौकीन मुन्ना ने यूं ही एक दिन फिल्म डायरैक्ट्री उठाई और कुछ गीत संगीत-निर्देशकों को भेज दिए। कुछ समय बाद संगीतकार विशाल भारद्वाज ने फोन किया और कहा कि वो जल्दी ही उनके साथ काम करेंगे। इसके बाद मुन्ना धीमन ने चैनल वी के पॉपस्टार्स के अलबम 'आसमान' के लिए गाने लिखे। मुन्ना धीमन की लेखनी पर गुलज़ार का असर नज़र आता है। 'यू मी और हम' के एक गाने की बानगी पेश है, 'अपने रंग गंवाए बिन, मेरे रंग में घुल जाओ, अपनी धूप बुझाए बिन मेरी छांव में आ जाओ। तुम तुम ही रहो, मैं मैं ही रहूं, हम हम ही रहें, तीनों मिलकर साथ चलें, साथी जनम जनम, यू मी और हम।'
इन दिनों तेज़ी से उभरा एक और नाम है इरशाद कामिल का। इरशाद भी चंडीगढ़ के ही हैं। उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता में पीएचडी की है। वह ट्रिब्यून के संवाददाता थे। एक दिन निर्देशक लेख टंडन का इंटरव्यू लेने पहुंचे और बातों-बातों में लेखजी ने उन्हें मुंबई आकर लिखने का निमंत्रण दे डाला। इरशाद ने इसके बाद मुंबई में कई सीरियल लिखे, जिनमें संजीवनी, कत्र्तव्य वगैरह शामिल हैं। 'चमेली' उनकी पहली फिल्म थी। इसके बाद इरशाद ने कई फिल्मों के गीत रचे, जैसे 'शब्द', 'सोचा न था', 'आहिस्ता आहिस्ता', 'करम', 'नील और निक्की' वगैरह। उन्होंने उस्ताद सुल्तान खान के प्रसिद्ध अलबम 'उस्ताद एंड दीवाज़' के लिए भी गीत लिखे थे। लेकिन इरशाद को सही मायनों में स्टार-गीतकार बनाया इम्तियाज़ अली की फिल्म 'जब वी मेट' ने।
पत्रकार नीलेश मिश्रा इन दिनों एक चर्चित गीतकार बन चुके हैं। नैनीताल के रहने वाले नीलेश को गीत लिखने का शौक था। उन्होंने अपने गीत जगजीत सिंह को भेजे भी थे, पर उनकी ओर से कोई उत्तर नहीं आया। फिर उनकी मुलाकात हुई महेश भट्ट से। और भट्ट साहब ने उनको पहला मौका दिया। नीलेश के लिखे कई गाने बेहद मकबूल हुए हैं। जैसे फिल्म 'जिस्म' के गाने 'जादू है नशा है', 'चलो तुमको लेकर चलें'। 'वो लम्हे' का गीत 'क्या मुझे प्यार है' और 'चल चलें' वगैरह। हाल ही में आई 'जन्नत' के कुछ गीत नीलेश ने लिखे हैं। उनका एक अंग्रेज़ी उपन्यास '173 अवर्स ऑफ कैप्टिविटी' प्रकाशित हो चुका है।
महेश भट्ट की कई फिल्मों के गीतकार रहे हैं सईद कादरी। सईद जोधपुर के रहने वाले हैं। जब मुंबई में गीतकार बनने की तमन्ना में अनगिनत लोग संघर्ष कर रहे हों, तो मुंबई से बाहर के इन गीतकारों का कामयाब होना किसी चमत्कार से कम नहीं है। नीलेश अभी भी दिल्ली निवासी हैं, सईद कादरी अभी भी जोधपुर में ही रहते हैं और तभी मुंबई आते हैं, जब गानों की दरकार होती है। अस्सी के दशक के उत्तराद्र्ध में मुंबई में अपनी किस्मत आज़मा चुके सईद जोधपुर लौटकर इंश्योरैंस एजेंट बन गए। आगे चलकर किकस्मत ने फिर करवट बदली और इस बार सईद फिल्म-संसार के बेहद चर्चित गीतकार बन गए। 'पाप', 'मर्डर', 'ज़हर', 'रोग', 'कलयुग', 'गैंगस्टर', 'अनवर' और 'जन्नत' जैसी अनेक फिल्मों में उनके गाने आ चुके हैं।
स्वानंद किरकिरे नए गीतकारों में एक और चर्चित नाम है। स्वानंद इंदौर में पले-बढ़े हैं और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक होने के बाद वह थियेटर में सक्रिय हो गए थे। फिर टीवी सीरियल लिखे, सहायक निर्देशक हुए और गायक भी बने। कॉलेज के ज़माने में लिखा उनका गीत 'बावरा मन देखने चला एक सपना' सुधीर मिश्रा ने सुना, तो अपनी फिल्म 'हज़ारों $ख्वाहिशें ऐसी' में ले लिया। इसे $खुद स्वानंद ने ही गाया है। इसके अलावा स्वानंद ने 'परिणीता' और 'खोया खोया चांद' जैसी फिल्मों में भी गाने गाए हैं। 'परिणीता', 'एकलव्य', 'लगे रहो मुन्ना भाई', 'खोया खोया चांद' जैसी फिल्मों में स्वानंद ने गाने रचे हैं।
प्रसून जोशी वैसे तो मैकेन एरिक्सन जैसी अंतर्राष्ट्रीय एड एजेंसी के चीफ हैंं, लेकिन बतौर गीतकार वो खूब ख्याति अर्जित कर चुके हैं। प्रसून जोशी ने कई विज्ञापन लिखे हैं। एक बार हवाई अड्डे पर उनकी मुलाकात आदित्य चोपड़ा से हुई। दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया और फिर आगे चलकर आदित्य ने कुणाल कोहली की फिल्म 'हम तुम' के गीत प्रसून से लिखवाए। फिर 'रंग दे बसंती' के गीत और संवाद दोनों प्रसून ने लिखे। 'फना' और 'तारे ज़मीन पर' के लिए लिखे प्रसून जोशी के नगमे पर्याप्त चर्चित रहे हैं। चाहे प्रसून हों या सईद कादरी, नीलेश मिश्रा, स्वानंद किरकिरे या फिर मुन्ना धीमन, इन सभी ने कजरा, चूड़ी, बिंदिया और चुनरी जैसे शब्दों के मायाजाल में भटक रहे हिंदी फिल्मी गीतों को एक नई दिशा और एक नया सोंधापन दिया है। इसलिए हमें इस नई पीढ़ी के लफ्ज़ों के इन सौदागारों के बारे में जानना भी चाहिए और इनका आभारी भी होना चाहिए।
(दैनिक भास्‍कर से साभार)