सोमवार, 18 अगस्त 2008

सुन मेरे बंधु...

सचिन दा पहले गायक थे, बाद में संगीतकार। उनके गाए और संगीतबद्ध किए गानों में दर्शन है, जो प्रकाशस्तंभ की तरह हमें रोशनी दिखाते हैं...

हिमेश रेशमिया जैसे गायक-संगीतकके इस युग में मुझे सचिन देव बर्मन को याद करके दिल को सुकून मिलता है। 2006 में सचिन देव बर्मन की जन्मशती मनाई गई थी। मुझे याद है कि इस मौके पर भारतीय डाक विभाग ने एक डाक-टिकट भी ज़ारी किया था। आज मुझे याद आ रहे हैं वो गीत, जो स्वयं सचिन दा ने गाए थे।
जब भी बारिश ठीक से नहीं होती, तो हम भारतीयों का मन बेकरार हो जाता है। शायद इसकी वजह यह है कि बड़े शहरों में रहने के बावजूद हमारे मन में कहीं एक गंवई व्यक्ति छिपा हुआ है और उस व्यक्ति का बारिश से गहरा नाता है। बारिश न होने पर हम संगीत प्रेमियों को सचिन दा का एक गीत याद आता है, जो उन्होंने 1965 में 'गाइड में गाया था। बोल थे-अल्ला मेघ दे पानी दे, इस साल फिर बारिश कम हो रही है कहीं-कहीं सूखे की स्थिति है और विकल किसान आसमान की ओर देख रहा है...'आंखें फाड़े दुनिया देखे हाय ये तमाशा, हाय रे विश्वास मेरा, हाय मेरी आशा। अल्ला मेघ दे। यह बाउल शैली का महान गीत है।
सवाल यह उठता है कि एक संगीतकार होने के बावजूद सचिन दा को गाने की ज़रूरत ही क्या थी। और इसका जवाब यह है कि सचिन दा पहले गायक थे और बाद में संगीतकारे। सचिन दा का जन्म त्रिपुरा के कुमिला शहर में हुआ था। विभाजन के बाद यह जगह बांग्लादेश का हिस्सा बन गई। त्रिपुरा के राजपरिवार में पैदा हुए सचिन दा ने शास्त्रीय-संगीत की अपनी शुरुआती तालीम अपने पिता नवद्वीपचंद्र देव बर्मन से ली थी, जो स्वयं एक सितारवादक और ध्रुपद गायक थे। इसके बाद उन्होंने उस्ताद बादल खां और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय से सीखा। शुरुआत में सचिन दा रेडियो पर पूर्वी बंगाल और उत्तर-पूर्वी बंगाल के लोकगीत गाते थे।
24-25 साल की उम्र तक कुमार सचिन लोकसंगीत और सुगम संगीत के लोकप्रिय गायक बन चुके थे। वो आकाशवाणी के लिए गाते थे। उस दौरान हिंदुस्तान रिकॉर्ड्स ने उनसे संपर्क किया और उनके उपशास्त्रीय गीतों का एक रिकॉर्ड ज़ारी किया। इस रिकॉर्ड का गीत 'धीरे से जाना बगियन में बेहद लोकप्रिय हुआ था।
1933 में सचिन देव बर्मन ने अपना पहला गीत न्यू थियेटर्स की 'यहूदी की लड़की के लिए रिकॉर्ड करवाया था, जिसके संगीतकार पंकज मलिक थे। पर इस गाने को बाद में यह कहकर पहाड़ी सान्याल से रिकॉर्ड करवा लिया गया कि सचिन देव बर्मन के उच्चारण पर बंगाल का गहरा असर है। इस बात से सचिन दा आहत ज़रूर हुए, लेकिन उन्होंने तय कर लिया कि अब वो संगीतकार बनने पर ज़्यादा ज़ोर देंगे।
कहते हैं कि 1940 में सचिन दा बंबई पाश्र्वगायक बनने का मकसद लेकर ही आए थे और उन्होंने 1941 में मोहन पिक्चर्स की 'ताजमहल में दो गाने भी गाए। इनके बोल थे-'प्रेम प्यार की निशानी और 'चले चलो प्रेम के राही। संगीतकार थे माधवलाल डी. मास्टर। दिलचस्प बात यह है कि इस रिकॉर्ड पर गायक का नाम कुमार सचिन देव बर्मन लिखा है। शुरुआत में सचिन दा अपने नाम के आगे राजघराने के राजकुमार का सूचक शब्द 'कुमार लगाया करते थे।
बंबई आने के कुछ साल बाद 1946 में उन्होंने शुरुआती दौर का अपना एक मार्मिक गीत गाया था फिल्मिस्तान की 'आठ दिन में। बोल थे-'उम्मीद भरा पंछी था खोज रहा सजनी। आपको बता दें कि इसे हिंदी के प्रख्यात कवि गोपाल सिंह नेपाली ने लिखा था। यह भी सचिन दा के गाए अनमोल गानों में से एक है। इसके बाद लगभग तेरह सालों तक सचिन दा ने अपने संगीत निर्देशन में कोई गीत नहीं गाया। फिर आई बिमल रॉय की 'सुजाता, जिसमें सचिन दा ने वो गीत गाया, जो अब उनका सिग्नेचर-गीत बन चुका है, उनकी पहचान। 'सुन मेरे बंधु रे सुन मेरे मितवा। सही मायनों में सचिन दा की गायकी का युग यहीं से शुरू होता है। उनकी आवाज़ में एक खास भटियाली खुशबू है। और यही वजह है कि जब जब सचिन दा को लगा कि यह गीत उनकी आवाज़ में फबेगा, तब-तब उन्होंने कुछ गीतों को अपनी आवाज़ दी।
1963 में उन्होंने बिमल रॉय की 'बंदिनी में गाना गाया-'मेरे साजन हैं उस पार। इस गाने को भी बैकग्राउंड में ही रखा गया था। सचिन दा के गाए ज़्यादातर गाने पाश्र्व में बजते रहते हैं और फिल्म की कहानी आगे बढ़ती जाती है। 1965 में आई 'गाइड में सचिन दा ने 'मेघ दे के अलावा एक और बेमिसाल गीत गाया था। शैलेंद्र का लिखा गीत-'वहां कौन है तेरा मुसािफर जाएगा कहां। अपनी लेखनी और गायकी में यह गाना बहुत अनमोल है। 'कोई भी तेरी राह ना देखे, नैन बिछाए ना कोई, दर्द से तेरे कोई ना तड़पा, आंख किसी की ना रोई, कहे किसको तू मेरा, मुसाफिर जाएगा कहां।
1969 में सचिन दा ने शक्ति सामंत की 'आराधना में संगीत दिया। इस फिल्म का गाना 'सफल होगी तेरी आराधना दार्शनिक गीतों का सिरमौर है। इस गाने को फिल्म के बांग्ला संस्करण में भी रखा गया था। सचिन दा के ज़्यादातर गाने ऐसे हैं, जिनमें दर्शन है। जो एक लाइटहाउस की तरह हमें रोशनी दिखाते हैं। 1969 में ही उन्होंने एक और बेमिसाल गाना गाया था, 'तलाश में। यह गाना था-'मेरी दुनिया है मां तेरे आंचल में। इसी तरह से उन्होंने 'प्रेमपुजारी में 'प्रेम के पुजारी हम हैं रस के भिखारी जैसा गीत गाया था। सचिन दा का सीना तब गर्व से फूल गया था, जब 1971 में उनके बेटे राहुल देव बर्मन ने उनसे 'अमर प्रेम का गीत गवाया था। बोल थे-'डोली में बिठाइके कहार। 1972 में उन्होंने 'जि़ंदगी-जि़ंदगी में दो गाने गाए। सचिन दा ने अपनी आवाज़ का बेहद संयमित इस्तेमाल किया। और हमें इस बात का अफसोस रह गया कि आिखर इतने लंबे कैरियर में उन्होंने केवल 26 हिंदी गाने ही क्यों गाए। (लेखक विविधभारती में कार्यरत हैं)
(दैनिक भास्‍कर से साभार)